अपनी सुरीली आवाज़ से लोगो के दिलो पर राज करने वाली स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने अनेक भाषाओं में हजारों गीत गाये हैं। उनकी सुरीली आवाज़ का सिनेमाई अभिनेत्रियों की 4 पीढ़ियों को सहारा मिला है।

युवाओं और किशोरों की नयी पीढ़ी भी पुराने गीतों को गाती और गुनगुनाती है। जब लता मंगेशकर 5 वर्ष की थीं, उन्होंने तभी अपने पिता शास्त्रीय गायक और रंगकर्मी दीनानाथ मंगेशकर से संगीत सीखना आरम्भ कर दिया था। जब उनकी उम्र 7 वर्ष थी, तो उनका परिवार मध्य प्रदेश के इंदौर से महाराष्ट्र आ गया। जहाँ पर पहली बार उन्होने मंच पर गाया जिसके लिए उन्हें 25 रुपये मिले थे।

वर्ष 1942 में पिता के निधन के पश्चात् उनका संघर्ष भरा जीवन शुरू हो गया। बड़ी संतान होने की वजह से उन्हें केवल 13 वर्ष की उम्र में ही परिवार की ज़िम्मेदारी संभालनी पड़ गयी। उन्हें उनके पिता के दोस्त और मराठी फिल्मकार विनायक दामोदर कर्नाटकी (मास्टर विनायक) ने फिल्मों में अभिनेत्री और गायिका के रूप में उन्हें काम दिलवाया। लता ने मास्टर विनायक के कहने पर पिता के निधन के 1 सप्ताह पश्चात् ही मराठी फिल्म 'पहली मंगलागौर' में अभिनय भी किया। फिर उन्होंने 7 अन्य मराठी फिल्मों में भी अभिनय किया।

पहली बार उन्हें पार्श्व गायन का मौका मराठी फिल्म 'किती हसाल' के लिए मिला, परन्तु दुर्भाग्यवश फिल्म के रिलीज होने से पूर्व इस गाने को हटा दिया गया। संगीतकारों ने फिर काफी दिनों तक उनसे गाना नहीं गवाया, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता था कि लता की आवाज़ पतली है। 1943 में उनका पहला हिंदी गाना रिकॉर्ड हुआ और लता 1945 में मुंबई आ गयीं।

लता को वर्ष 1948 में ‘मजदूर’ फिल्म के लिए गाये गीत ‘दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोड़ा’ से पहचान मिली। लता के करियर का टर्निंग प्वाइंट वर्ष 1949 रहा। इस वर्ष आयी फिल्म ‘महल’ में उनके द्वारा गाया गीत ‘आयेगा आने वाला’ बहुत ही बड़ा हिट रहा। इस गीत ने न सिर्फ उनकी प्रतिभा को स्थापित करने में सहायता की, बल्कि फिल्म जगत के बड़े संगीतकारों के साथ गाने का अवसर भी दिया। इसके बाद से लता मंगेशकर ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।