‘सांड की आँख फिल्म में दिखेगी संघर्ष, शौर्य और स्वाभिमान की कहानी, यूपी की शूटर दादियां मचाएंगी धमाल

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Rishabh verma
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‘सांड की आँख फिल्म में दिखेगी संघर्ष, शौर्य और स्वाभिमान की कहानी, यूपी की शूटर दादियां मचाएंगी धमाल

फिल्म ‘सांड की आँख’ के ज़रिये उत्तर प्रदेश के जौहड़ी गाँव की शूटर दादियों की कहानी अब पड़े परदे पर आने वाली है। फिल्म के निर्देशक तुषार हीरानंदानी और निर्माता अनुराग कश्यप के द्वारा शूटर दादियों के किरदारों को बड़े परदे पर लाना कोई आसान काम नहीं था। इस पूरी फिल्म को बनाने में लगभग साढ़े तीन साल का समय लगा। फिल्म में दादियों के रोल के लिए अभिनेत्रियों को ढूंढना भी एक मुश्किल काम था। इसके लिए कई अभिनेत्रियों ने मना भी कर दिया था, लेकिन बाद में भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू ने शूटर दादियों के किरदार निभाने के लिए हामी भर दी।

फिल्म में जौहड़ी गाँव की देवरानी-जेठानी की कहानी दिखाई गई है। शूटिंग को लेकर चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर में काफी जूनून था और इसी के चलते उन्होंने शूटिंग में बड़ा मुकाम हासिल किया। उनकी सफलता से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हजारों लड़कियों को स्वाभिमान के साथ जीने और संघर्ष करने की प्रेरणा मिली। शूटर दादियों की ज़िद और संघर्ष के आगे समाज को अपनी रूढ़िवादी सोच बदलनी पड़ी। आज यहाँ के लोग अपनी बेटियों को शूटिंग करता हुआ देखकर गर्व का अनुभव करते हैं।

अभी कुछ दिन पहले ही इन शूटर दादियों पर बनी फिल्म ‘सांड की आँख’ का टीजर लांच हुआ है। इसे देखकर लगता है तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर ने दादियों के किरदार को निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। दोनों ही बहुत भी परिपक्व अभिनेत्रियाँ हैं और लगता है उन्होंने अपने किरदारों के साथ भी पूरा न्याय किया है।

शूटर दादियां 2012 में आमिर खान के शो ‘सत्यमेव जयते’ में भी आ चुकी हैं। 2015 में जब इस शो की क्लिप तुषार हीरानंदानी ने देखी तो उनके मन में शूटर दादियों पर फिल्म बनाने का आइडिया आया। बाद में उन्होंने निर्माता अनुराग कश्यप से बात की तो उन्होंने भी हाँ कर दी। शूटर दादियों पर फिल्म बनाने के लिए फिल्म के निर्माता निर्देशक उनके परिवार से मिले। फिल्म निर्माता टीम ने दादियों के पहनावे, तौर-तरीके और व्यवहार को बारीकी से समझा।

चंद्रो तोमर की उम्र 87 वर्ष है, लेकिन वे कहती हैं कि इंसान का तन बुड्ढा हो सकता है, मन कभी बुड्ढा नहीं हो सकता। शूटर दादियों को देखकर गाँव के लोग भी अपनी बेटियों को शूटिंग रैंज पर भेजने लगे हैं। अब जब बेटियां पदक लेकर आती हैं तो उन्हें गौरवान्वित महसूस होता है। पिस्टल लेकर चलने वाली दादियों को लोग धाकड़ महिला कहने लगे थे। शूटर दादियों ने जो भी किया वे उससे बहुत संतुष्ट दिखाई देती हैं।